Tuesday, October 17, 2006

फाँसी अफ़ज़ल को नहीं तो क्या हमें दीजिये
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कोफ़्त होती है कभी-कभी हमारे देश के सार्वजनिक जीवन के स्तर को देखकर !
यहां पर आप किसी भी मुददे पर बहस चला सकते है, और ऐसे विषयों को चर्चा से बाहर कर सकते हैं जो वास्तव मे जनता के पक्ष मे उठते है ।
ये केवल हमारे यहां सम्भव है कि एक लाख से अधिक किसानों की आत्महत्या पर इतनी बहस नही हुई होगी जितनी अफ़ज़ल की फाँसी पर हो रही है ।
आप कोई भी विषय शुरु कर दीजिये और मीडिया के चैनल और अखबार की जगह भरना शुरु । वाह रे सूचना युग, इस से तो अच्छा पुरातन युग था जब मर जाते थे मारे तो नही जाते थे !

अफ़्जल को क्या हो, क्या नही ये परेशानी का कारण नही है, समझ नही आती प्राथमिकतायें ! जो देश की संसद पर हमला करते हैं वो बच जाते है, किन्तु जो खुद ही मरने पर मजबूर हैं, उनकी मत सुनिये ! मारने वाले की सुनवायी है मरने वालों की नही ? कुछ वर्षो के बाद विदर्भ नक्सली गढ़ बन जाये तो आश्चर्य क्या है ?

इस देश में वैसे ही न्याय नहीं होता, बडी मुश्किल में होता है तो उस पर राजनीति होने लगती है ! मै ये मान भी लूं की उसको गलत फाँसी हुई है,तो भी किसी को भी न्याय प्रक्रिया के बीच मे नहीं पड़्ना चाहिये । कश्मीर के लोग ये कह्ते हैं की अगर फाँसी हुई तो घाटी जल जायेगी ! घाटी तो वैसे ही जल रही है पिछ्ले २० वर्षो से ! देश को एक बारगी छोड़ भी दे तो भी घाटी ने ही कीमत चुकायी है उसके जलने की!लगभग अस्सी हज़ार लोग मारे जा चुके है कश्मीर में । एक मित्र कश्मीर से लौटे, मैने पूछा, कैसे हालात हैं, कहने लगे थोडे़ दिनों बाद श्मशान ले जाने के लिये पुरूष नहीं मिलेंगे !!!

ओ कश्मीर के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों, ये पहला संग्राम होगा जो अपने ही लोगों की हत्या करता हो !

जब तक सत्ता धमकियों के आगे झुकती रहेगी तब तक वह ब्लेकमेल होती रहेगी ! अगर हम एक ही नियम बना ले की हम बन्दूक चलाने वालों से बात नही करेगे, और हर अहिंसक आन्दोलन को सुनेंगे, तो देश वास्तव मे समता मूलक रास्ते पर बढेगा ! अफ़ज़ल को तो फाँसी इन धमकियों को शान्त करने के लिये ही हो जानी चाहिये कि सरकार को डराया जा सकता है !

क्या करूं, किसानों के बेटों से बन्दूक उठाने को कहूं, क्योंकि आज भी उसका मिलना आसान है बजाय रोटी के!

अफ़ज़ल को छोडि़ये, आज पूरे देश के मानस में ये बात बैठती जा रही है, कि अपनी बात सुनवानी है तो तोड़-फोड़ करो! ये मानस बदलना चहिये, अन्यथा नगर पालिका के नल पर पानी से लेकर, संसद तक केवल हिंसा ही दिखायी देगी !

5 comments:

संजय बेंगाणी said...

आपकी चिंता जायज हैं. अफजल के मामले में वोटो की राजनीति हो रही हैं. समझ में नही आता वे कौन हैं जो देश के दुश्मन को फाँसी से बचाने वालो को वोट देंगे.
दुसरी ओर क्या किसान वोट नहीं देते.

विजय वडनेरे said...

सच, कुछ समझ नहीं आता कि क्या किया जाय?

मैं तो निराश हो चुका हूँ इन सबसे...


(एक प्रश्न: आपके ब्लाग में प्रविष्टियों के शीर्षक/टाईटल क्यों नहीं आते??)

Punit Pandey said...

deepak ji, agar aap apni pravishtiyon ka title enable kar denge to woh blogs aggregators jaise HindiBlogs.Com par behtar roop se padhi ja sakengi.

hemanshow said...

सही लिखा है।
अफ़ज़ल भाई के बारे में तो क्या लिखूँ।
हमें किसान और उनके जैसे हज़ारों गरीबों की भालाई के लिये उठने वाली आवाज़ को अपना हर सम्भव तन-मन-धन से समर्थन देना चाहिये।

hemanshow said...

एक बात और लिखनी थी। मैंने बहुत लोगों को ये कसमें खाते देखा है कि अगर उन्हैं बन्दूक मिल जाये तो वो सारे नेताओं को गोली से उड़ा दें। वैसे अफ़ज़ल भाइ भी कुछ ऐसा ही करने जा रहे थे।
:-)